Tuesday 28 February 2017

रंडी बना दिया

जब से मेरी बीवी को पीएसी के जवानों और उसके जीजा ने पेला था उसकी चुदवाने की भूख और बढ़ गई थी। इसी दौरान मेरी बदली प्रतापगढ़ हो गई थी। नीलू की बुर की आग एकदम चरम पर थी। अब चुदवाते वक़्त वो खुल के गालियों का प्रयोग करती। वो अब पूरी रंडी हो चुकी थी।
मेरी ड्यूटी एक प्राइवेट कंपनी में थी। एक दिन मुझे कुछ काम से पटना जाना था। हम दोनों की ट्रेन रात के साढ़े ग्यारह बजे थी। खाना खाकर हम ऑटो से स्टेशन पर पहुंचे। स्टेशन पर बिल्कुल सन्नाटा था। बहुत कम लोग या यूँ कहें कि इक्का दुक्का लोग दिखाई दे रहे थे। ट्रेन थोड़ी लेट थी। हम वहीं बैठ कर बातें कर रहे थे।
तभी न जाने कहाँ से कुछ पुलिस वाले आ गए। वो हमसे पूछताछ करने लगे। मैंने उन्हें अपना कार्ड दिखाया पर वो नहीं माने और हमें एक केस में फरार पति-पत्नी साबित करने लगे। मैं उनको समझाता रहा पर वो नहीं माने।
दरोगा बोला- साले, मादरचोद ! हमें समझाओगे? पहले तो अपने माँ-बाप का खून करते हो और भागने की प्लानिंग करते हो ! ले चलो इनको थाने फिर बात करते हैं !
इतना कहकर वो सब हम दोनों को ले जाने लगे। एक सिपाही नीलू से बोला- साली चल अपना सामान उठा ! तुझसे तो लगता है साहब ही बात करेंगे ! साली की जवानी तो देखो ! अगर साहब बोल दें तो यहीं पटक कर चोद दूं !
नीलू बोली- क्या बदतमीजी कर रहे हो? एक औरत से इस तरह बात करते हैं?
दूसरा सिपाही बोला- तब कैसे बात करते हैं बुरचोदी रंडी? ज्यादा बोल मत ! नहीं अभी तेरे मर्द के सामने साहब त्तुम्हें अपने लंड पर नचवाएंगे ! समझी?
यह सब सुनकर नीलू चुप हो गई पर उन सब की बुरी नज़र उस पर पड़ चुकी थी। वो सब हमें लेकर ड्यूटी-रूम में गए। वहाँ पर उस दरोगा ने पता नहीं किसे फ़ोन लगाया। बात करने के बाद वो मुस्कुराने लगा। उसने अपने तीनों सिपाहियों से कुछ बात की और उसके बाद वो सब हमें गाडी में स्टेशन के दूसरी ओर ले जाने लगे। तो मैंने पूछा- हमें कहाँ ले जा रहे हैं?
तो बोला- अभी पता चल जायेगा !
थोड़ी देर बाद हम एक मकाननुमा ऑफिस में पहुंचे। उन्होंने हमें उतारा और अन्दर ले गए। वहां कोई नहीं था। दरअसल यह वीआईपी गेस्ट-रूम था। वहां पहुँच कर दरोगा बोला- अब बोल साले ! छुटना चाहता है या दफा ३०२ लगवाना चाहता है? अब हम चाहें तो तुम्हें छोड़ भी सकते हैं पर इसके लिए तुझे कुछ देना होगा ! देगा?
मैं बोला- क्या?
वो बड़ी बेशर्मी से बोला- तेरी माल ! यानि तेरी बीवी !
मैं गुस्से में उससे बोला- जबान सम्हाल कर बात कर साले ! तू मुझे नहीं जानता, मैं तुम्हें जेल भिजवा सकता हूँ !
वो बोला- भिजवा दे ! पर वो तो तू तब करेगा जब तू यहाँ से बच कर जायेगा?
इतना कहकर उसने नीलू को दबोच लिया। बाकी के सिपाहियों ने मुझे दबोच कर मेरे मुँह में कपड़ा ठूंस कर मेरा मुँह बंद कर दिया और फिर मुझे रस्सी से खूब मजबूती से बांध कर एक कमरे में छोड़ दिया।
अब आगे की कहानी नीलू के शब्दों में-
उस दरोगा ने पीछे से मुझे कसकर पकड़ लिया, फिर बोला- रानी, आज तो तुझे हमारे लौड़ों पर नाचना होगा !
मैंने चिल्लाते हुए कहा- छोड़ो मुझे ! मैं तुम लोगो की बात नहीं मानूंगी किसी भी कीमत पर !
तब दरोगा बोला- फिर ठीक है, हम तेरे पति का एनकाउंटर कर देंगे, उसके बाद तुझे भी चोद कर रंडीखाने भेज देंगे। जहाँ तेरी जवानी का भुरता बन जायेगा। मान जाओ !
मैं बोली- ठीक है ! मुझे सोचने दो !
मैंने सोचा कि अगर मैं इन सब की बात मान लेती हूँ तो ज्यादा से ज्यादा ये मेरी चुदाई ही करेंगे और अगर नहीं मानी तो ये मेरे पति को जान से तो मारेंगे ही साथ में मुझे भी बर्बाद कर देंगे। यह सोचकर मैंने कहा- ठीक है, मुझे मंजूर है ! पर सुबह तुम लोगों को हमें इज्जत के साथ वापस छोड़ना होगा !
दरोगा बोला- जो तुम बोलो रानी, सब मंजूर !
अब मेरा दिमाग चुदाई की बात सोचते ही धुकधुकाने लगा।
एक सिपाही बोला- साहब क्या मस्त प्लान बनाया है, कई दिनों से किसी की मारी नहीं थी, आज सारी कसर निकालूँगा !
दूसरा बोला- अबे अब इस हरामजादी को चुदाई वाले कमरे में तो ले के चल !
यह कह कर उसने मेरी गांड सहला दिया। वो सब अब मुझे ऊपर लेकर जाने लगे। रास्ते में कोई मेरी चुचियों को सहलाता, कोई गांड पर, तो कोई गाल पर !
हाय ! मैं तो इतने लोगों से चुदने की बात सुनकर ही मस्त हो गई थी। आज फिर मुझे अपने पीएसी वाले जीजा की टक्कर का लौड़ा जो मिलने वाला था।
अन्दर पहुंचते ही दरोगा बोला- चल री मादरचोद, अपने कपड़े उतार ! कसम से साली एकदम कंटीली है ! आज तो तुझे जमकर चोदूंगा ! खोल बुरचोदी ! आज तुझे पुलिस का डंडा दिखाऊंगा। अरे तुम लोग देख क्या रहे हो? गरम करो रंडी को ! आज इसे दिखायेंगे कि पुलिस का लौड़ा जब घुसता है तो क्या होता है ! साली का गांड भी पेलूँगा !
हाय ........ आह! ऐसे मत करो ! छोड़ो मेरी चुचियों को ! आह सी... दर्द हो रहा है ! कभी चूचियां नहीं दबाई क्या? जब मैं चुदने को तैयार हूँ तब मेरे साथ जबरदस्ती क्यों कर रहे हो?
साली रंडी ! तू ऐसी माल है कि बिना ऐसे किए चोदने का मज़ा ही नहीं आएगा ! खोल स्साली पहले अपना जलवा तो दिखा ! यह कहकर दरोगा ने साड़ी के ऊपर से ही मेरी बुर को मींज़ दिया।
हाय, क्या कर रहे हो। छोड़ो ना! मैं बोली।
तब उसने मुझे कपड़े उतारने का इशारा किया। अब मेरी समझ में आ गया था कि चाहे मेरी चूची हो या बुर या गांड सबकी बैंड बजेगी। मैं अन्दर ही अन्दर खुश भी थी। काफी दिनों के बाद मेरी जवानी की बैंड फिर से बजने वाली थी। हाय जीजू ! क्या बना दिया तूने मुझे ?
अब मैंने एक-एक करके अपने कपड़े उतार के एक तरफ रख दिए क्योंकि मैं जानती थी कि ये सब मेरी मां-बहन सब चोद सकते हैं तो मैं अपने कपड़े क्यों ख़राब करूँ !
उन सबने भी अपने कपड़े मुझसे पहले ही उतार दिए। उनके लौड़ों को दख कर तो मन किया कि उनका मुँह चूम लूँ ! सब एक से बढ़ कर एक ! दरोगा का सबसे मस्त ! मेरी बुर तो पानी देने लगी, साली कुछ देर का इन्तज़ार भी नहीं करवा सकती।
दरोगा ने पीछे से मुझे पकड़ लिया और लण्ड मेरी गांड से सटाते हुए बोले- रानी तैयार हो ना ! अगर नहीं तो तेरे पति को तैयार करूँ !
मैं तो मस्त थी पर कुछ नहीं बोली। सब मेरे ऊपर टूट पड़े, मेरे दोनों 32 साइज़ की चुचियों को दबा-दबा कर लाल कर दिया।. दरोगा मेरे होंठों को अपने मुंह में लेकर चूसने लगा। एक मेरी बाईं और एक मेरी दांई चूची के चुचूक चूसने लगे। एक मेरे गांड के दरारों को अपने जीभ से चाटने लगा। सब तरफ से मैं फँसी थी। मेरी बुर तो रिसने लगी। करीब ५ मिनट तक ऐसा करने के बाद एक उंगली मेरी बुर को सहलाते-सहलाते अन्दर घुस गई। हाय मेरा तो बुरा हाल था।
वो उंगली दरोगा की थी। वो चीखा- सालों ! इस रंडी मादरचोद को भी मज़ा आ रहा है ! यह देखो इसकी बुर का रस !
कहकर वो अपनी उंगली चाटने लगा। सब मेरे ऊपर हंसने लगे और एक बोला- हरामजादी, तुझे तो सारी पुलिस-फ़ोर्स भी चोदे तब भी आग न बुझे !
मैं भी बेशर्मी से बोली- साले रंडी हूँ रंडी की तरह चोदोगे तभी मज़ा दूंगी ! मेरी बुर सस्ती रंडी वाली बुर नहीं है ! समझे ? पीएसी के लौड़ों पर दौड़ चुकी हूँ। देखती हूँ तुम्हारे में कितने दम है !
दरोगा ने मेरे कान के लौ को चूसते हुए धीरे से फुसफुसाते हुए कहा- रानी, सही कहूँ तो एकदम मस्त माल हो ! ये सब तो परम पेलू हैं पर सही में अगर तुम मज़ा लेकर यहाँ से जाना चाहती हो तब हम जैसा कहें वैसा करना होगा !
मैं भी नशीली आवाज में बोली- मेरे राजा, आज बुर का दरवाज़ा खोल तो अपने डंडे से ! मैं तो बिल्कुल तैयार हूँ ! जैसे चाहो वैसे पेलो ! तुम लोगो की रंडी हूँ ना, सब तरफ से फाड़ डालो मेरी ! मेरी बुर तुम्हारे लौड़े का स्वागत ही करेगी, इतना जीभर के पेलवाउंगी कि तुम भी क्या याद करोगे।
दरोगा बोला- क्या नाम है तुम्हारा रानी?
मैं बोली- नीलू !
हाय बड़ा मस्त और रंगीन नाम है। चल रानी अब हमारे लौड़ों को अपने बुर के लिए तैयार कर ! दरोगा बोला।
मैं अब उनके मस्त खड़े लौड़ों को चाटने लगी। एक बोला," साली मस्त है ! सब आता है इसे ! लगता है इसका पति इसे सब सिखा कर रखता है। लंड को चाट रंडी साली ! ले पी मादरचोद !
उधर मैं उनके लौड़े चूसने में मस्त थी, इधर दरोगा ने मेरी प्यारी सी चोट्टी बुर पर हाथ लगाया और फिर मुँह भी लगा दिया। फिर तो एक ने मेरी गांड में उंगली कर दी। मैं और मेरी जवानी पूरी उफ़ान पर आ चुके थे और थोड़ी देर में मेरी जवानी के रस का फव्वारा निकल गया। दरोगा पूरा का पूरा माल चाट गया और बोला- रानी तेरी बुर भी तेरी मुंह की तरह नमकीन है ! मज़ा आ गया, अब तो तुम्हारी असली तीसरी डिग्री शुरु होगी।
इतना कहकर उसने मुझे कुतिया की तरह उल्टा कर दिया। उसके बाद थूक लगा लगा कर जो उनके 9-9 इंच के लौड़ों ने मेरी पेलाई की पूरे आधे घंटे तक बिना रुके !
पेल-पेल के उन्होंने मेरी बुर में ही अपना सारा का सारा माल डाल दिया। मेरी बुर से उनका पानी टपकते हुए नीचे फर्श पर गिर रहा था। हाय मैं तो पूरी तरह मस्त हो गई थी, सभी मुझको एक-एक बार चोद चुके थे।
अब मैं दरोगा की गोद में थी। वो मेरी चुचियों से खेल रहा था। उसने मुझसे पूछा- रानी मज़ा आया?
मैं उसके लंड को सहलाते हुए बोली- पूरा राजा ! तुम लोगों ने तो मेरी बुर को एकदम मस्त कर दिया ! इस समय तो दो चार लंड और भी होते तो मैं आराम से चुदवा लेती। कसम से पहली बार पीएसी ने और इस बार पुलिस ने पेल-पेल कर मुझे पूरा रंडी बना दिया। हाय ! अगला राउंड कब शुरू करोगे राजा?
दरोगा ने पीएसी वाली चुदाई के बारे में पूछा तो मैंने सारा किस्सा बता दिया शोर्ट में। उसने मेरे जीजा का नाम पूछा तो मैंने बता दिया। जीजा का नाम सुनते ही वो हंसने लगा। दरअसल मेरे उस जीजा की ड्यूटी वहीं प्रतापगढ़ में ही लगी थी। उसने मुझसे पूछा- तू कहे तो तेरे जिज्जू को यहीं बुला दूं?
मैंने कुछ नहीं कहा। तब उसने अपने सेलफोन पर बात करके मेरे जीजा को आने को कहा- यार आओ यहाँ एक मस्त रंडी तुम्हारा इन्तज़ार कर रही है।
मैं तो जीजा के आने की बात सोच कर सिहर गई। अब उन लोगों के लंड फिर से मेरी कहानी सुनकर तैयार हो गए थे।
एक बार फिर मेरे बुर में लौड़े घुसने लगे। अबकी बार एक सिपाही ने मेरी गांड को निशाना बनाया और मेरी दोनों तरफ से जबरदस्त कुटाई हुई। मैं तो पूरा निहाल हो गई ! मेरी गांड लंड ले-ले के पूरी लाल हो गई। चारों ने जगह बदल-बदल के मुझे चोदा। हाय मेरा रंडीपन मेरे ऊपर हावी हो गया था। मैं तो मदहोश हो गई थी। याद भी न रहा कि मेरे पतिदेव बगल वाले कमरे में बंद हैं। सबने मुझे चोद-चोद कर मेरी बुर को एकदम खोल दिया। इस बार सबने एक साथ मेरे मुंह में अपना पानी दिया। मुझे न चाहते हुए भी उसे पीना पड़ा।
तभी नीचे गाड़ी रुकने की आवाज़ आई, मैं समझ गई कि जिज्जू आ गया है ! मेरी बुर जो आठ-दस बार झड़ चुकी थी, एक बार फिर पानी देने लगी।
तभी दरवाज़े पे जीजा आया, वो मुझे देखकर सन्न हो गया। मैं दौड़ कर उससे लिपट गई। वो सब समझ गया। तुंरत उसने अपने कपरे उताड़े और दरोगा से बोला- अरे यार ! इस हरामजादी रंडी को कहाँ से पकड़ लिया।
अरे नीलू रानी कैसे यहाँ?
तब मैंने उसे सारी बात बताई तो वो हंसने लगा और बोला- साली कोई मर्डर नहीं हुआ है शहर में ! ये तो तू इनको भा गई होगी और ये तेरे को फंसा के यहाँ अपने लौड़ों पर नचवा रहे हैं ! चलो ठीक भी है ! तेरी जैसी मादरचोद रंडी की इसी तरह गांड मारी जानी चाहिए। अरे यार ! नीचे मेरा अर्दली होगा, उसे भी बुला ले, वो भी इसे देखेगा तो मस्त हो जायेगा। चल साली, पहले मेरा लौड़ा तो चाट !
कसम से मैं इस समय खुद को एक रंडी ही समझ रही थी और खुल कर अपनी खुजली शांत करना चाहती थी। मैं भी खुल के उनके लौड़े चाटने लगी। जीजा का अर्दली भी मुझे देख कर मस्त हो गया।
अब कमरे में केवल मैं जीजा, दरोगा और वो अर्दली थे। तीनों मुझे फिर से नोचने लगे और गन्दी गन्दी गालियां देने लगे। मुझे भी मज़ा आ रहा था।
उन तीनों के लंड चूसने के बाद मैं बोली- जीजा, राजा, मेरा मन कर रहा है कि एक साथ तुम सब के लौड़े मेरे तीनों छेद को भर दें ! कसम से पिछला बलात्कार याद दिला दो !
जीजा बोला- अरे हरामजादी, तू चिंता मत कर ! सुबह तक तू अपने पैरों पर नहीं जा सकेगी ! साली मैं तो तेरा गांड मरूँगा !
दरोगा बोला- मैं तो इसके मुंह को चोदूँगा !
अर्दली बोला- साहब लोग थैंक्यू ! इस साली की बुर तो एकदम ताजी लौंडिया की तरह फूली है ! मैं तो इसी में अपना डंडा डालूँगा ! आज इसे मालूम होगा कि पुलिस और पीएसी जब मिल के मारते हैं तो क्या होता है।
फिर क्या, उनके मूसल मेरी गांड, बूर और मुँह में घुस कर उधम मचाने लगे। मैं तो एकदम से मस्ता गई। हाय, क्या चुदाई थी !
जगह बदल बदल कर तीनों ने सारी रात मेरी पति की जमानत का पूरा इस्तेमाल किया। हाय रे जीजा का काला लंड ! उफ्फ ये दरोगा मुआ तो सारी रात मुझे पेलता ही रहा, कभी मुंह में, कभी बुर में तो कभी गांड में ! सारी रात सब मेरी जवानी को रौंदते रहे और मै रंडियों की तरह चुदती रही। हाय रे जवानी- उफ्फ्फ ये उफनती जवानी केवल दस इंच के लौड़ों से ही मस्त रहती है, वैसे तो मेरे पति का भी नौ इंच का है, पर वो जब भी पेलते हैं तो अकेले ! हाय, यहाँ तो कई सारे मिल के मेरी बच्चेदानी को फाड़ डालते हैं।
किसी तरह पेलवाते- पेलवाते सुबह हुई। रात भर मैं आह,उच्च, आउक्च,उफ्फ, आई, हाय,सीईईईई. उई मां और न जाने कौन सी मस्ती वाली सिस्कारें मारती रही।
मैंने अपने पूरे कपड़े पहने। जीजा जल्दी चला गया, दरोगा ने मेरे पति को सख्त ताकीद देकर कहा- अगर किसी से कहा तो जान से तो जाओगे ! तेरी बीवी की बुर में डंडा भी पेलेंगे

Monday 27 February 2017

लिंग की आत्मकथा

मैं शेखर का लिंग हूँ। मुझे अनेकों उपनामों से जाना जाता है क्योंकि लोग मेरा नाम लेने से शर्माते हैं। शेखर 36 साल का है और मुझ में बहुत दिलचस्पी रखता है। जब शेखर छोटा था तब उसे मेरे में कोई खास रूचि नहीं थी। तब मैं खुद भी छोटा ही था और शेखर सिर्फ मुझे सुसू करने के लिए इस्तेमाल करता था… पर आजकल तो मैं उसकी सोच का केंद्रबिंदु सा बना हुआ हूँ।
जब शेखर का जन्म हुआ था तो मैं करीब एक इंच का था और मेरा आकार एक पतली मूंगफली जैसा था, ऊपर और नीचे से पतला और बीच से थोड़ा मोटा। मेरा मुँह पैना था और उस पर जिल्द की एक-दो परतें थीं, जैसे चूड़ीदार पाजामे का निचला छोर होता है। यह फालतू की खाल मेरे मुँह पर हमेशा रही है… यह क्यों है ? मुझे पहले पता नहीं था, पर जब शेखर लड़कपन और जवानी की ओर बढ़ा तब मुझे इसके फ़ायदे और ज़रूरत का पता चला। यह बाद में बताऊँगा…
पहले पाँच साल में मेरे आकार में ज्यादा फर्क नहीं आया। जब शेखर 6-7 साल का हुआ तब मैं करीब 2 इंच का था और मेरी गोलाई भी थोड़ी बढ़ गई थी पर मेरा मुँह अभी भी पैना ही था। मुझ में ज्यादा बदलाव तब आने शुरू हुए जब शेखर 13 साल का हुआ। मेरा आकार करीब 3.5 इंच का हो गया था और मेरे आस-पास बाल उगने लगे थे… हलके, घुंघराले और मुलायम… शेखर को आश्चर्य हुआ था… शायद वह इसकी उम्मीद नहीं कर रहा था। धीरे-धीरे बाल घने होते गए और मेरे आस-पास के पूरे इलाके को ढक लिया।
शेखर जब 18 साल का हुआ तब मैं पूरी तरह पनप गया था। मेरी लम्बाई करीब 4.75 इंच और मेरी परिधि करीब 3.5 इंच हो गई थी। मेरे मुँह का पैनापन खत्म हो गया था और उसकी जगह गोल कुकुरमुत्ता–नुमा (mushroom-shaped) सुपारा बन गया था जिसकी परिधि मेरे तने की परिधि से ज्यादा थी और जो करीब एक इंच लंबा था। मेरे मुँह पर अतिरिक्त खाल का घूंघट रहता था।
जब शेखर मुझसे खेलता तो इस खाल को पीछे खींच कर मेरे मुँह को नंगा कर देता जो कि गुलाबी और अत्यंत मार्मिक था। शेखर ने कई बार अपने सुपारे को खाल की परत से बाहर निकालने की कोशिश की थी पर सुपारा बड़ा होने के कारण बाहर नहीं आ पाया था।
एक दिन एक डॉक्टर ने उसकी खाल को एक झटके में पीछे खींच कर उसके सुपारे को पूरी तरह बेनकाब कर दिया था। शेखर को क्षणिक दर्द हुआ था पर उसके बाद से उसकी खाल सुपारे के ऊपर आसानी से चलने लगी थी। सामान्य तौर पर सुपारा खाल के घूंघट में ढका रहता पर जब कभी शेखर को उत्तेजना होती या वह हस्तमैथुन करता तो सुपारा खाल से बाहर आकर पूरा दिखाई देता है। कुछ धर्म के लोग लिंग के ऊपर की खाल को हमेशा के लिए काट कर निकलवा देते हैं। ऐसे लिंग को खता हुआ लिंग कहते हैं (circumcised)। खते हुए लिंग के दो फायदे माने गए हैं… एक तो लिंग के सुपारे में कोई मैल या गंदगी नहीं छिपी रह सकती जिससे वह स्वच्छ रहता है और दूसरा यह कि सुपारा सदैव उघड़ा रहता है जिस कारण उसकी धीरे धीरे संवेदनशीलता कम हो जाती है और चरमोत्कर्ष तक पहुँचने में थोड़ा अधिक समय लगता है।इसके अलावा खते और अनखते लिंग में कोई फर्क नहीं होता।
जब उत्तेजना के कारण मैं स्तंभित हो जाता हूँ तो मेरी लम्बाई 5.75 इंच और परिधि लगभग 4 इंच हो जाती है। शेखर की 18 साल की उम्र के बाद से मेरे आकार में कोई विकास नहीं हुआ है। शेखर हमेशा से मेरे बारे में बहुत शर्मीला रहा है। वह किसी से मेरे बारे में बात करने या कुछ पूछने से कतराता है। जब से शेखर अपने आप नहाने योग्य हुआ है तबसे शेखर के अलावा किसी ने मुझे नहीं देखा है। बस शेखर की शादी के बाद उसकी पत्नी अंजलि ने मुझे देखा है।
मेरा लोगों से छुपे रहना मेरे आकार के प्रति कई भ्रांतियाँ पैदा करने में मदद करता आया है। अक्सर मर्द अपने लिंग के आकार को बढ़ा-चढ़ा कर ही बताते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उन्हें इस बात का प्रमाण नहीं देना पड़ेगा। इसका लड़कों पर मानसिक दुष्प्रभाव यह पड़ता है कि उन्हें लगता है केवल उनका लिंग ही छोटा है… और वे इस हीन भावना से सदा के लिए प्रभावित हो जाते हैं। वे यह नहीं सोचते कि जब प्रकृति ने उनके बाकी अंग… जैसे हाथ, पैर, कान, नाक इत्यादि उपयुक्त आकार के बनाये हैं तो केवल उनका लिंग ही छोटा क्यों बनाया होगा?
इस हीन-भावना से त्रस्त पुरुष अपना लिंग बड़ा करने के कई उपाय करते आये हैं… बाज़ार में तरह तरह के लोशन, क्रीम, गोलियाँ, पम्प व क्रियाएँ उपलब्ध हैं जो कि लिंग का आकार बड़ा करने का वादा करती हैं… पर वास्तविकता में ये ढोंगी डॉक्टरों, हकीमों, वैद्यों, साधुओं और व्यापारियों की आसानी से पैसा कमाने की योजना होती है। बहुतों ने आजमाया है पर हर पुरुष को इसमें निराशा ही मिली है क्योंकि लिंग को बड़ा करना संभव है ही नहीं।
यह सिर्फ सर्जरी से मुमकिन है पर इसके बहुत खतरे और दुष्परिणाम हो सकते हैं। मेरी राय में शेखर को मेरे आकार से संतोष करना चाहिए क्योंकि मैं हर तरह से अपना निर्धारित काम करने में सक्षम हूँ और अंजलि कभी मेरे आकार को लेकर असंतुष्ट नहीं हुई है।
विभिन्न देशों में लिंग का औसत आकार
( 1 इंच = 2.54 cm)
देश लिंग का औसत आकार
कोंगो गणतंत्र, अफ्रीका 18.0 cm
एकुआडोर, दक्षिण अमरीका 17.7 cm
घाना, अफ्रीका 17.2 cm
कोलोम्बिया, दक्षिण अमरीका 17.0 cm
आइसलैंड, यूरोप 16.5 cm
इटली, यूरोप 15.7 cm
दक्षिण अफ्रीका गणराज्य, अफ्रीका 15.2 cm
स्वीडन, यूरोप 14.9 cm
ग्रीस, यूरोप 14.7 cm
जर्मनी, यूरोप 14.4 cm
न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया 13.9 cm
ब्रिटेन, यूरोप 13.9 cm
कनाडा, अमरीका 13.9 cm
स्पेन, यूरोप 13.9 cm
फ़्रांस, यूरोप 13.4 cm
ऑस्ट्रेलिया 13.2 cm
रूस, यूरोप 13.2 cm
अमरीका 12.9 cm
आयरलैंड, यूरोप 12.7 cm
रोमानिया, यूरोप 12.7 cm
चीन, एशिया 10.9 cm
भारत, एशिया 10.0 cm
थाईलैंड, एशिया 10.0 cm
दक्षिण कोरिया, एशिया 9.6 cm
उत्तरी कोरिया, एशिया 9.6 cm
वैश्विक स्तर पर लिंग का औसत आकार
लिंग-अवस्था लम्बाई परिधि (घेरा)
शिथिल 9.0 – 9.0 cm
3.5 – 3.7 इंच 8.5 – 9.0 cm
3.3 – 3.5 इंच
उत्तेजित 12.8 – 14.0 cm
5.0 – 5.7 इंच 10 – 10.5 cm
3.9 – 4.1 इंच
मेरे दो पड़ोसी भी हैं जो मेरे साथ जुड़े हुए से हैं। पहले तो मुझे उनके अस्तित्व का पता नहीं था पर जैसे-जैसे शेखर बड़ा हुआ मेरा ध्यान इन पड़ोसियों पर पड़ा। इनका नाम तो अंडकोष है पर इन्हें प्यार से टट्टे या गोलियाँ बुलाते हैं। ये मेरी तरह आकर्षक तो नहीं हैं पर शेखर की मर्दानगी मुझसे ज्यादा इनके कारण हैं। शायद शेखर को इनके बारे में ज्यादा पता नहीं है… वह तो मुझे ही मर्दानगी का चिह्न मानता है। सिर्फ शेखर ही नहीं अन्य लोग भी यही समझते हैं…
पर मैं जानता हूँ अंडकोष बहुत ज़रूरी काम करते हैं। उनके अंदर करोड़ों शुक्राणु (sperm) पैदा होते हैं जिन्हें मैं सम्भोग के चरमोत्कर्ष के समय विस्फोट के साथ छोड़ देता हूँ। इन करोड़ों शुक्राणुओं में से कोई एक सफल शुक्राणु, स्त्री के अंडे को भेदता है जिससे एक नई ज़िंदगी की शुरुआत होती है। यह प्रकृति की सबसे अनूठी और अद्भुत क्रिया कही जा सकती है। इसमें मेरा काम केवल स्तंभित हो कर स्त्री की योनि में प्रवेश करना होता है जिससे वीर्य स्त्री की योनि के भीतर छूट सके। बाकी काम, जैसे शुक्राणु और वीर्य उत्पादन अंडकोष और प्रोस्टेट ग्रंथि करते हैं। अगर ये ठीक से काम ना करें तो शेखर कभी पिता नहीं बन सकता, बस मेरे कारण यौन-सुख अवश्य भोग सकता है और स्त्री को सुख दे सकता है।
अंडकोष की थैली में विशेष मांसपेशियाँ होती हैं जो सिकुड़ कर उसे बदन के करीब ला सकती हैं या ढीली होकर बदन से दूर लटका सकती हैं। ये मांसपेशियाँ तीन मुख्य भूमिका निभाती हैं :
1. शुक्राणु एक निश्चित तापमान में ही रह सकते हैं जो कि शरीर के सामान्य तापमान से थोड़ा कम होता है। इसलिए ठन्डे मौसम में अंडकोष को गरमाहट देने के लिए बदन के करीब खींच लेती हैं और गर्मी में उन्हें कर ठंडक पहुंचाने के लिए दूर लटका देती हैं। ऐसा करने से शुक्राणु को जीवित रहने में मदद मिलती है।
2. जब चरमोत्कर्ष में वीर्योत्पात होता है तो वीर्य को वेग से बाहर भेजने के लिए ये सिकुड़ कर वीर्य का रास्ता कम कर देती हैं।
3. जब शेखर को भय, कौतूहल या दुविधा हो या वह किसी ऐसी क्रिया में लगा हो जिसमें अंडकोषों को चोट लगने का डर हो तो वे सिकुड़ कर अंडकोषों को शरीर के पास ले जाती हैं।
शुक्राणु के अलावा अंडकोष एक अत्यंत महत्वपूर्ण रसायन, टेस्टोटेरोन (testoterone) का संचार करते हैं जिससे शेखर की मर्दानगी पनपती है। जब शेखर अपनी माँ की कोख में था तभी से इस रसायन का उत्पादन शुरू हो गया था जिस कारण शेखर लड़की ना बनकर लड़का बना था। फिर शेखर के यौवन प्रवेश के समय इस रसायन के अतिरिक्त उत्पादन के कारण ही उसके बदन पर बाल, दाढ़ी-मूछें, आवाज़ में मर्दानगी और मेरे आकार में विकास जैसे मर्दाने बदलाव आये थे।
शेखर को शायद नहीं पता कि प्रजनन का परिणाम लड़का होगा या लड़की, यह स्त्री पर नहीं बल्कि सिर्फ पुरुष पर ही निर्भर होता है। पुरुष के शुक्राणुओं में अगर सिर्फ एक तरह के अंश (XX) होते हैं तो लड़की का और अगर दो तरह के अंश (XY) होते हैं तो लड़के का जन्म होता है। स्त्री के अंडे में इस तरह के विकल्प नहीं होते… वह सिर्फ एक तरह के अंश (YY) ही पैदा कर सकती है। इसलिए बच्चे के लिंग की पूरी ज़िम्मेदारी मर्द पर होती है।
पर भाग्य की विडम्बना देखिये… कोई भी शेखर को, एक के बाद एक, तीन बेटियों के जन्म के लिए जिम्मेदार नहीं मानता… सब उसकी पत्नी को ही दोषी मानते हैं। पर मुझे पता है… इस के ज़िम्मेदार मेरे पड़ोसी टट्टे हैं।भगवान का शुक्र है मेरा इसमें कोई हाथ नहीं है। मैं तो सिर्फ पिचकारी का काम करता हूँ… या तो मूत्र या फिर वीर्य की बौछार करना मेरा काम है। बाकी तकनीकी काम शेखर के टट्टे और अंदरूनी अंग, अव्यय और ग्रंथियां करते हैं ! मुझे खुशी है मेरा काम सबसे मज़ेदार है। ना केवल शेखर को मैं चरम आनन्द पहुँचाता हूँ, मैं उसकी पत्नी अंजलि को भी अत्यंत सुख दिलाता हूँ… ना केवल सम्भोग के द्वारा बल्कि वह मुझे छूने में, सहलाने में और अपने मुँह में लेकर चूसने में भी आनन्द लेती है।
प्रायः मैं शिथिल अवस्था में ही रहता हूँ जब मेरा आकार करीब 3.5 से लेकर 5.5 इंच तक का होता है। जब शेखर को यौन-उत्तेजना होती है तो मैं कड़क हो जाता हूँ और मेरा आकार 5 से 6 इंच तक का हो जाता है। यह हम भारतीयों और एशिया-वासी मर्दों के लिंगों का औसत आकार होता है। मैं कड़क कैसे होता हूँ यह भी एक रोचक क्रिया है।
शेखर को उत्तेजना यौन-सम्बंधित दृश्यों, आवाजों, स्पर्श या कामुक यादों से होती है। इस उत्तेजना का संकेत उसके मस्तिष्क (para-ventricular nucleus) में पैदा होकर, रीढ़ की हड्डी की विशेष नसों से गुजरता हुआ, श्रोणि (pelvis) नसों और प्रोस्टेट ग्रंथि से होता हुआ मुझ तक पहुँचता है। मेरे अंदर तीन नलियां हैं… बीच की नली मूत्र और वीर्य विसर्जन के काम आती है और मेरे दोनों तरफ एक-एक नली है (corpora cavernosa) जो कि मेरी जड़ की तरफ खुली और सुपारे के तरफ से बंद होती हैं।
उत्तेजना संकेत इन दोनों नलियों को ढीला कर देता है और जिससे वे खुल जाती हैं और इन में रक्त प्रवाह सामान्य से करीब आठ-गुणा बढ़ जाता है। इस अतिरिक्त रक्त के भरने से मैं बड़ा और कड़क हो जाता हूँ और मेरा रक्त-चाप बाकी शरीर के रक्त-चाप के मुक़ाबले दुगुना हो जाता है। इस बढ़ते रक्त-चाप के कारण मेरी बाहरी सतह उन धमनियों को बंद कर देती है जिनसे रक्त बाहर जाता है। अतः मेरे अंदर रक्त क़ैद हो जाता है और मैं बड़ा और कड़क हो कर सम्भोग-योग्य हो जाता हूँ।
आम तौर पर मेरी सम्भोग क्षमता करीब 1.5 से 3 मिनट की होती है जिस दौरान मैं स्तंभित (कड़ा) रहता हूँ और फिर मैं चरमोत्कर्ष के करीब पहुँच जाता हूँ। चरमोत्कर्ष पर पहुँचते ही शेखर के मस्तिष्क से संकेत नाटकीय रूप से बदलते हैं। जननांग में एड्रिनलीन उत्पादन में अचानक वृद्धि होती है जिससे वीर्योत्पात शुरू हो जाता है जिसमें प्रोस्टेट ग्रंथि और मैं मिलकर करीब 10 से 15 बार हिचकोले लेकर वीर्य निष्कासित करते हैं। कुल वीर्य की मात्रा करीब 10 ml होती है जो कि एक चाय की चम्मच से थोड़ी ज्यादा होती है।
वीर्योत्पात के साथ ही मेरी जड़ की वे मांसपेशियाँ ढीली होने लगती हैं जिन्होंने रक्त बाहर जाने वाली धमनियों को बंद करके रखा था। इसके फलस्वरूप मेरे में क़ैद रक्त को बाहर जाने का रास्ता मिल जाता है और धीरे धीरे वह रक्त मुझे छोड़ कर बाकी शरीर में प्रवाह करने लगता है। ऐसा होने से मैं फिर से छोटा और शिथिल हो जाता हूँ और मुझ में सम्भोग-योग्य स्तंभता नहीं रहती।
एक बार वीर्योत्पात करने के बाद मुझे कुछ समय तक आराम की ज़रूरत होती है जिस दौरान मैं दुबारा से स्तंभित नहीं हो सकता। यह समय करीब 15 से 20 मिनट का हो सकता है। इस दौरान मुझे आराम करना ही पसंद होता है। बल्कि वीर्योत्पात के करीब 5 मिनट तक तो मुझे कोई स्पर्श या सहलाना भी अच्छा नहीं लगता। इस विराम के बाद मुझे दोबारा स्तंभित करने में पहले से ज्यादा उत्तेजना की ज़रूरत पड़ती है जो कि स्त्री मुझे प्यार से सहला कर या अपने मुँह में लेकर कर सकती है। जब मैं दूसरी बार कड़क होता हूँ तो मैं ज्यादा देर, यानि 8 से 10 मिनट तक सम्भोग कर पाता हूँ। यह अवधि मेरे योनि प्रवेश के बाद की अवधि है और यह शेखर और उसकी पत्नि की यौन-तृप्ति के लिए काफी पर्याप्त है। इससे ज्यादा देर का सम्भोग मेरे लिए और योनि के लिए अक्सर असहाय हो जाता है। मैं मानता हूँ कि सेक्स-फिल्मों में और कहानियों में सम्भोग घंटों चलता है पर यह अप्राकृतिक है और इससे प्यार और आनन्द का अनुभव नहीं होता। अब जब शेखर का वीर्योत्पात होता है तो वीर्य की मात्रा भी कम होती है और संकुचन भी कम देर होता है।
आजकल मैं एक सत्र में दो से ज्यादा बार स्तंभित हो कर वीर्य-स्खलन कर नहीं पाता हूँ। पर शेखर जब जवान था तो तीसरी बार भी मुझे स्तम्भन के लिए तैयार कर पाता था। तीसरी बार के स्तम्भन के लिए समय भी ज्यादा लगता था, करीब 30 से 40 मिनिट, और सम्भोग अवधि भी बढ़कर करीब 10 से 15 मिनिट हो जाती थी। तीसरी बार की वीर्योत्पात मात्रा बहुत कम होती थी। एक सत्र में शेखर तीन से ज्यादा बार सम्भोग कभी नहीं कर पाया है। प्रकृति ने मेरी स्तम्भन और सम्भोग क्षमता पर अंकुश लगा कर एक तरह से स्त्री जाति पर एहसान किया है। अगर यह अंकुश नहीं होता तो शेखर सारी सारी रात रति-क्रिया में ही लत रहता।
हालांकि मैं सामान्य आकार का हूँ पर शेखर को मैं बहुत छोटा लगता आया हूँ। शेखर अकेला ही नहीं है… लगभग सभी मर्द अपने लिंग को छोटा मानते हैं। दक्षिण और पूर्वी एशियाई मर्दों के लिंग अमरीकी, अफ्रीकी और यूरोपीय मर्दों के लिंग के मुकाबले थोड़े छोटे ज़रूर होते हैं पर वैश्विक-स्तर पर देखा जाये तो सभी लिंगों का औसतन आकार मेरे आकार से ज्यादा बड़ा या छोटा नहीं होता। वैश्विक पैमाने पर शिथिल लिंग 3.5 से लेकर 5 इंच तक और खड़ा लिंग 5 से लेकर 6.75 इंच तक का होता है। मतलब, दुनिया के करीब 86% मर्द इसी आकार के लिंग से विभूषित हैं। हाँ, जिस तरह दुनिया में कुछ अजीबो-गरीब लंबे और ठिगने लोग मिलते हैं उसी प्रकार लिंग भी इन औसत आंकड़ों से परे हो सकते हैं। इन करीब 14% मर्दों में भी करीब 2% ही ऐसे होंगे जिनका कड़क लिंग 3.5 इंच से कम या 7.5 इंच से बड़ा होगा। जिन मर्दों का लिंग इन आकारों से भी छोटा या बड़ा होता है वे अपने आप को बद-किस्मत समझ सकते हैं। जहाँ अति-छोटा लिंग मर्द की मानसिकता और उसकी मर्दानगी के अहसास को आघात पहुंचाता है वहीं ज़रूरत से ज्यादा बड़ा लिंग भी एक तरह का बोझ ही होता है। तुम्हें आश्चर्य हो रहा है ? मैं समझाता हूँ…
प्रकृति ने मुझे मूल रूप से सम्भोग के लिए बनाया है। मूत्रपात के लिए लिंग ज़रूरी नहीं है वरना स्त्रियों के पास भी लिंग होता !!। सम्भोग के समय मैं योनि में प्रवेश करता हूँ… स्त्री और पुरुष, दोनों को, पूर्ण संतुष्टि तब तक नहीं मिलती जब तक मैं पूरा-का-पूरा, अपने मूठ तक, योनि के अंदर ना चला जाऊं। स्त्री-पुरुष का समागम तभी पूरा होता है जब लिंग पूर्णतया योनि में समा जाये। परन्तु स्त्री की योनि की औसतन गहराई 4.5 से 5.5 इंच की ही होती है जिसके आगे उसकी मर्मशील ग्रीवा (cervix) की दीवार होती है। सम्भोग के समय मैं इस दीवार तक तो अंदर जा सकता हूँ पर इसे भेद नहीं सकता। लिंग की ग्रीवा से बारबार टक्कर स्त्री को पीड़ा देती है और उसे सम्भोग का आनंद नहीं आता। अगर लिंग बहुत बड़ा होगा तो ना तो मर्द उसे मूठ तक अंदर डाल पायेगा और ना ही स्त्री को पूरा लिंग भोगने और पुरुष के नज़दीकी स्पर्श का आनंद मिलेगा। मतलब दोनों का आनंद कम हो जायेगा। यूं समझो कि अगर लिंग दो फीट का होता तो स्त्री-पुरुष के बीच कोई स्पर्श ही नहीं होता।
अत्यधिक बड़े लिंग के और भी नुकसान हैं… उसको स्त्री अपने मुँह में पूरी तरह नहीं ले पाती और गुदा-मैथुन में भी उसे ज्यादा तकलीफ होती है। अर्थात, ज्यादा बड़े लिंग का स्वामी यौन-सुख को पूर्णतया भोग नहीं पाता है और उसकी पत्नि / प्रेमिका की कामाग्नि भी ठीक तरह से नहीं बुझ पाती। सम्भोग एक सामान्य क्रिया है और इसके लिए सामान्य आकार के गुप्तांग ही पर्याप्त हैं। शेखर को मैं छोटा क्यों लगता हूँ ? इसके कई कारण हैं :
1. मैंने पहले कहा था कि शेखर का लिंग उसके अलावा उसकी पत्नि ने ही देखा है। इसी तरह बाकी मर्दों के लिंग भी अक्सर छिपे या ढके रहते हैं और उनका असली आकार एक गुप्त रहस्य होता है। मर्दों के बाकी बाहरी अंग जैसे नाक, कान, उँगलियाँ इत्यादि गुप्त नहीं होते और सबको उनके आकार का पता होता है। एक मैं ही ऐसा अंग हूँ जिसका आकार सबसे छिपा रहता है… ऐसी हालत में किसी भी आदमी के लिए यह कहना आसान होता है कि उसका लिंग कितना बड़ा है। इस मसले पर अक्सर मर्द बढ़ा-चढ़ा कर ही बात करते हैं। जबसे लड़कों में यौन-उत्सुकता जागती है वे हर किसी से बड़े लिंग की बात ही सुनते हैं और कहानियों तथा सेक्स-फिल्मों में भी बड़े लिंग के चुनिन्दा मर्द ही होते हैं। ऐसे वातावरण में हर आदमी को ऐसा लगता है कि सिर्फ उसका लिंग ही छोटा है।
2. जब शेखर मुझे देखता है तो उसका दृष्टिकोण ऊपर से नीचे की ओर होता है जिससे वह मेरी पूरी लम्बाई नहीं देख पाता; जब वह सामने खड़े किसी और मर्द का लिंग देखता है तो उसका दृष्टिकोण ऐसा होता है कि वह उसकी पूरी लम्बाई देख पाता है। इस कारण उसे दूसरे मर्दों के लिंग बड़े नज़र आते हैं।
3. आम मर्द की तरह शेखर को भी औपचारिक रूप से यौन शिक्षा नहीं मिली है। उसे मेरे बारे में जो भी पता है वह या तो दोस्तों से जाना है, जो उसकी ही तरह अनभिग्य हैं, या फिर सेक्स कहानियां पढ़ी हैं जहाँ रोमांच बनाने के लिए लिंगों का बखान बढ़ा-चढ़ा कर किया जाता है। ऐसी कहानियों में लिंग हमेशा 8 से 12 इंच का होता है जो 1 से 2 घंटे तक सम्भोग करता है। मैं जानता हूँ ये दोनों बातें कितनी गलत हैं। मुझे मालूम है कि सामान्य सम्भोग की अवधि 1.5 से 3 मिनटों की होती है और एक बार वीर्योत्पात के बाद दोबारा सम्भोग करीब 8 से 10 मिनटों तक किया जा सकता है। इससे ज्यादा अवधि ना तो आनंद देती है और ना ही इसकी ज़रूरत है बल्कि इससे स्त्री-पुरुष के गुप्तांगों को क्षति हो सकती है।
4. पुराने ज़माने में यौन ज्ञान बहुत कम था और ज़्यादातर स्त्री-पुरुष एक दूसरे को शादी के बाद सुहाग-रात पर ही पहली बार नंगा देखा करते थे। लज्जा-वश स्त्री तो अकसर आँखें बंद ही रखती थी और अँधेरे के कारण वैसे भी कुछ ज्यादा नहीं दिखता था। पर आधुनिक ज़माने में इन्टरनेट के कारण बिरला ही कोई ऐसा लड़का या लड़की होगी जिसने नग्न स्त्री-पुरुष या फिर हर तरह की यौन क्रियाएँ ना देखी होंगी। सब जानते हैं कि सेक्स-फिल्मों में काम करने वाले मर्द खास तौर से उनके बड़े लिंग के आधार पर लिए जाते हैं। ये लोग उन 2% में होते हैं जिनके लिंग औसत से बड़े होते हैं या फिर सर्जरी द्वारा बढ़वाए होते हैं जिससे उनका व्यवसाय तो अच्छे से चलता है पर जिन्हें बाद में तकलीफ हो सकती है।
5. सेक्स-फिल्मों में ना केवल मर्दों के लिंग बड़े दिखाए जाते हैं… स्त्रियों के स्तन और चूतड़ भी बड़े और मनमोहक दिखाए जाते हैं। सम्भोग की अवधि भी लंबी और निरंतर दिखाई जाती है। असलियत में ऐसा नहीं होता। फिल्म की शूटिंग रोक-रोक कर की जाती है पर दिखाया ऐसे जाता है मानो सम्भोग निरंतर चल रहा है।
इन कारणों के चलते स्वाभाविक है कि शेखर मेरे आकार से मायूस सा रहता है। उसकी कल्पना में उसका लिंग और सम्भोग-काबलियत किसी पोर्न-स्टार की भांति होनी चाहिए। जहाँ एक तरफ सेक्स-फिल्में और कहानियां मनोरंजन करती हैं वहीं ये मर्दों में अपने लिंगों के प्रति मायूसी और हीन भावना भी पैदा करती हैं। अगर कोई कहता है उसका लिंग 8, 10 य 12 इंच का है तो समझ लो या तो उसे यह नहीं पता कि एक इंच कितना होता है, या लिंग नापना नहीं आता या फिर वह शेखी बखार रहा है। अगर उसका लिंग वाकई 8 इंच से बड़ा है तो वह उन 2% मर्दों में से है जो संपूर्ण यौन-आनंद से वंचित रहते हैं या फिर जिनकी पत्नी या प्रेमिका को कष्टदायक सम्भोग सहना पड़ता है। मानव-जाति के मर्दों को तो खुश होना चाहिए कि सम्पूर्ण वानर-जाति में उनका लिंग सबसे बड़ा है। बाकी जानवरों में भी शरीर के अनुपात से बहुत कम जानवरों का लिंग मानव लिंग से बड़ा होता है।
लिंग को बड़ा करना !
क्योंकि लगभग सभी मर्द अपने लिंग के आकार को लेकर मायूस रहते हैं तो सभी किसी ना किसी तरह उसको बड़ा करने की तरतीब सूझते रहते हैं। पुरुष की इस ला-इलाज अभिलाषा को पूरा करने के लिए कई ढोंगी डॉक्टर, साधू, हकीम और वैद्य बाजार में दूकान लगाये बैठे हैं। क्योंकि यह एक गुप्त और मर्दानगी का मसला होता है, इन ढोंगियों को अपने मासूम शिकार को ठगने का मौक़ा आसानी से मिल जाता है। वे जानते हैं कोई भी मर्द उनकी शिकायत नहीं कर सकेगा।
सच तो यह है कि लिंग का आकार बड़ा करने का कोई साधन या उपचार है ही नहीं। अगर होता तो कोई भी अमीर पुरुष छोटे लिंग वाला नहीं होता। आप सोचें कि क्या कोई ऐसा उपचार या साधन है जिससे आप अपनी ऊँगली या नाक या कान बड़े कर सकते हों ? प्रकृति ने जो आकार दे दिया सो दे दिया। हाँ, इंसान अपने पूरे शरीर के आकार को पौष्टिक आहार और उचित व्यायाम के द्वारा बढ़ा या घटा सकता है जैसा कि अनेकों खिलाड़ी और पहलवान करते आये हैं। पर किसी एक अंग को निशाना बनाकर केवल उसके आकार को बड़ा करना संभव नहीं है। यह केवल सर्जरी द्वारा संभव है पर इसके कई दुष्परिणाम हो सकते हैं।
शेखर को मेरे से दो शिकायतें और रहती हैं। कभी कभी वह सम्भोग करना चाहता है पर मैं कड़क नहीं हो पाता हूँ। इसे स्तम्भन-दोष (erectile dysfunction) कहते हैं। यह अक्सर अस्थाई और आकस्मक घटना होती है जो कि कई कारणों से हो सकती है जैसे शारीरिक थकान, मानसिक चिंता, उत्तेजना की कमी, सम्भोग में रूचि ना होना, कोई रोग या पीड़ा इत्यादि। इसे अस्थाई स्तम्भन-दोष कहते हैं और यह लगभग सभी मर्दों को कभी न कभी होता है। यह चिंता का विषय नहीं है। ऐसी हालत में सम्भोग को कुछ देर के लिए टालना सबसे उचित उपाय है और इन कारणों को दूर करके सम्भोग का प्रयास करना चाहिए। इसमें स्त्री बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उसे अपने आदमी के पौरुष का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए बल्कि उसे स्तंभन दिलाने में कामुक स्पर्श और मुख-मैथुन द्वारा मदद करनी चाहिए।
कुछ पुरुषों में यह दोष स्थाई होता है जो कि किसी अंग, ग्रंथि या अव्यय विफलता के कारण हो सकता है। इस दोष से ग्रस्त पुरुष कभी भी अपने लिंग को स्तंभित नहीं कर पाते पर यह दोष बहुत कम मर्दों में पाया जाता है। इसके उपचार के लिए डाक्टरी सलाह की ज़रूरत होती है। कुछ हद तक यह दोष उम्र के साथ भी पनपता है जिसके लिए दवाइयाँ उपलब्ध हैं जो कि डॉक्टर की सलाह के बाद ही लेनी चाहिए।

Sunday 26 February 2017

FOR READING MY SEX STORY

Hi, all of you thank you FOR READING MY SEX STORY. Main aapko mere story ke saath puri maja dene ke kosis karungi. yeh hai ki mera naam vishu hai main delhi main rehta hu avrage looking hi hight achi hai aur lamba choda hu jaha tak ke mere lund ka swl hai wo bhi 7 inch ka hai aur 2.5 inch mota hai…….. Main jis company main phle job karta tha us company m meri girlfrnd hai jiska naam shalini hai pyar say use shalu bulata hu shalini bht hi beautiful hai uska figure mujhe bahut pasand hai gori hai uske boobs bhi bht mote hai aur uski gand bht bht moti h mtlb agar kahu to 36 26 38 y figure hai uska…..
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Thodi der baad mene uski jhang par hath rakha aur baate karne laga halke halke uski jhang ko sehla raha tha main aur usse bate bhi kar raha tha main dekh raha tha uski awaj bhi dheele padti ja rahi thi…..Usne wesi legging aur kurta pehn rakha tha to pura sparsh ho raha tha sahi say har chiz ka main dheere dheere apne hath uski tango k bich main le gaya aur usse bola taange kholo wo boli koi dekh lega to hame ese acha nahi lagta main khada ho gaya aur thoda dekhne laga idhar udhar hum jis jgah bethe the waha s par koi bhi nahi aa raha tha to main fer say beth gaya aur usse bola apni taange khole usne apne dono pair faila liye aur main leggig ke upar say hi uski chut ko masalne laga wo ekdm nashe main ho gayi uski aankhe usne mera hath pakad liya aur bolne lagi baby yyeh kya ho raha hai mujhe bht acha lag raha hai……..
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Monday 20 February 2017

काम वासना की शिकार हुई माया

आज मैं आप लोगो के लिए एक और नही कहानी लेकर आया हूँ, बात अभी 2 दिन पहले की ही है, मैं आपनी ही एक ऑफीस स्टाफ जिसका नाम माया है, जिसकी उमर 19 साल, रंग सावला, बॉडी स्लिम है, के साथ किसी अफीशियल वर्क के लिए इंदूरे गया, इंदूरे के लाइ हम आपने घर से सूभ लगभग 6 बजे निकले और 12 बजे तक पहुच गये, हम दोनो ही माया की स्कूटी से वाहा पर गये थे, अफीशियल काम मे हमे लगभग शाम के 7 वही पर बाज गये, वाहा से वापिस आते हुए माया ने कहा की ‘सिर स्कूटी मैं ड्राइव करूगी’, तो मैने कहा की ठीक है, हू स्कूटी ड्राइव करने लगी और मैं पीछे बैठ गया, स्कूटी आपनी ही रफ़्तार मे आपनी मंज़िल की और बढ़ रही थी.
अचानक ही मेरी नज़र स्कूटी के मिरर्स पे गयी, उन मिरर्स मे उसकी च्चती का उभार नज़र आ रहा था, उसके छ्होटे छ्होटे नींबू जैसे उभर देखते ही मेरे माइंड ने डाइवर्षन ले ली, अब मैं उसको एक अलग ही नज़र से देख रहा था, मेरे अंदर काम वासना जाग गयी, अब मेरा मॅन कर रहा था की उसको चोद डू, बुत अभी हम ड्राइव पर थे, इसलिए मैं च्चाःकर भी कुच्छ कर नही सकता था, मैने एक प्लान ब्नाने की सोची की अगेर किसी तरह से ये मेरे साथ एक रात होटेल मे रुक जाए तो मज़ा आ जाए, बुत उसको रात भर होटेल मे रोकना क्काफी मुस्किल था, मुस्किल ही नही इंपॉसिबल था, क्योकि वो एक विलेज से बिलॉंग कराती थी, और मोस्ट्ली विलेजर्स लड़कियो को बाहर नही भेजते और वो भी एक अजनबी के साथ, बुत वो आपने घर पर सिर्फ़ ऑफीस जाने का बोलकर आई थी और लगभग 8 बजे तक वापिस आपने घर पर वो हमेशा पहुच जाती थी, मैने सोचा की अगर थोड़ी देर और लाते हो जाए तो सायद वो रात मे ड्राइव ना करे और फिर मजबूरन ही हमे रास्ते मे होटेल मे रुकना पड़ेगा.
बुत वो च्चहती थी की अगर थोड़ा से तेज ड्राइव करे तो लगभग 12 बजे तक हम घर पहुच जाएगे, इसलिए वो गाड़ी थोड़ा सा ताज ड्राइव कर रही थी, रास्ते मे झटको के साथ साथ मैं थोड़ा थोड़ा उसके करीब सरकने लगा, जैसे जैसे मे उसके करीब सरकता वो मुझसे दूर होने की कोसिस करते हुए थोड़ा आयेज सरकने लगती, थोड़ी ही देर मे मुझसे परेसां होकर उसने स्कूटी रोक दी और मुझे ड्राइव करने को कहा, मैं इसी मौके की तलाश मे था, मैने स्कूटी को धीरे धीरे ड्राइव करना शुरू कर दिया, मैं स्कूटी को लगभग 40 की ही बढ़ता पर चला रहा था, वो भी इस बात को जानती थी की रात मे मुझे बिना लेनज़स के कुच्छ भी देखाए नही देता है, इसलिए भी सायद उसने मुझे कुच्छ भी नही कहा, लगभग एक घंटे मे हम सांवेर नाम की जगह तक पहुचे, हल्की हल्की ठंडी होने की वजह से हमे टी की ज़रूरात महसूस हुई, तो मैने उसे टी पीने के लिए पूछा तो उसने हा कर दी और मैने रास्ते मे एक टी स्टाल पर स्कूटी रोक दी, और हम टी पीने बैठ गये.
अब मैने आपना जाल बनट हुए उसको कहा की माया अंधेरा काफ़ी हो गया है और हाइवे पर लाइट भी नही होने के कारण सॉफ सॉफ दिखाई भी नही दे रहा है, अभी सायद उज्जैन पहुचने मे ही हमे एक घंटा और लग जाएगा, उज्जैन पहुचते हुए ही हमे 9 बाज जाए गे और वाहा से भी लगभग 4 घंटे की ड्राइव और बक्या रहती है और स्कूटी की दीं लाइट के साथ इतनी रात मे इतना लंबा सफ़र ठीक नही है, क्या हम आज उज्जैन ही रुक जाए? सुबह 4 बजे ही यहा से घर की और ड्राइव करेगे तो भी हम 8 बजे तक मॉर्निंग मे घर पहुच जाएगे, सूभ सूभ 4 बजे के बाद तो उजाला बढ़ता ही जाता है, और हमे ड्राइव करने मे भी कोई दिक्कत नही होगी, उसने कहा की ‘सिर अगारहूम कोसिस करके ताज ड्राइव करे तो भी 1 बजे ट्के घर पहुच जाएगे, ज़्यादा लाते करना सही नही है, अब जल्दी से यहा से शेलेट है,’ अब मेरे पास कोई भी जवाब नही था और मैने स्कूटी की के उसकी ओर बढ़ा दी, अब भी ही ड्राइव कर रही थी और मैने भी उम्मीद छोड़ दी थी.
लगभग हमे अभी चले हुए लगभग 40 मिनिट ही हुए थे, और सयद हम लोग उज्जैन नगरी के करीब पहुच ही चुके थे की अचानक स्कूटी बब्बलिंग करने लगी और उनकोनटरोल होने लगी, अचानक ही उसने ब्रेक लगा दिए और मैने बॅलेन्स होने के लिए दोनो हाथ उसकी कमर पे रख दिए, बड़ा ही सुखद अनुभव था ये भी, हमे उतार कर देखा तो स्कूटी पंक्चर हो चुकी थी, मेरे चेहरे पर एक काटी हसी आई क्योकि उस स्कूटी मे स्तूपने भी नही थी, जैसे ही माया ने मेरी और हैरात भारी नाज़रू से देखा तो मैने आपने चेहरे पर परेसांी भरे भाव लाते हुए कहा की “अरे यार ये क्या हुआ? अब क्या करेगे? चलो घबराव मत, स्कूटी मुझे दो और तेज कदमो से मेरे साथ शेलेट है, सिटी ज़्यादा दूर नही है, कुच्छ ना कुच्छ जुगाड़ हो ही जाएगा, किसी ना किसी पंक्चर वाले को फोन लगाकर बुला लेगा औ राइज़ ठीक करा कर चलेगे,” और मैने स्कूटी पकड़ कर ताज कदमो के साथ बढ़ने शुरु कर दिया, और वो भी मेरे साथ तेज कदमो के साथ चलने लगी.
सिटी के अंदर पहुचते हुए हमे ½ घंटा लग ही गया, फिर मैने पंक्चर वाले की शॉप सर्च की और उसे कॉल करके बुलाया, काफ़ी देर बाद वो आया (शायद उसका घर दूर था) और हमारी स्कूटी का पंक्चर बनाया, इसमे ही हमे लगभग ½ घंटा और लग गया, अब 10:40 हो चक्का था और मैने स्कूटी स्टार्ट कर ली और कहा की जल्दी बैठो नही तो और देर हो जाएगी, तो उसने रिप्लाइ मे कहा की “नही सिर, आज यही उज्जैन मे रुक जाते है, सुबह ही चलेगे” मैने कहा की घबराव नही अब स्कूटी मैं ड्राइव कराता हूँ, कोसिस करूगा थोड़ी और तेज चलाने की, तो उसने जवाब दिया की नही सिर अगर आयेज रास्ते मे फिर से स्कूटी पंक्चर हो गयी तो? अब मुझे आपना मामला जमता हुआ देखाई दिया पर फिर भी मैने उसको कहा की तुम्हारे घर पर सभी टेसिओं करेगे और अगर उनको ब्टाया की तुम सिर के साथ उज्जैन मे ही रुक गयी हो तो कही वो कुच्छ ग़लत ना सोचे? तो उसने आपना फोन निकाला और आपने घर फोन लगाया, फोन उसके फादर ने उठाया “एस माया कहा पर है तू? इंदूरे से वापस आ गयी तू?”.
उसने रिप्लाइ किया “नही पापा, सिर और मैं 8 बजे मीटिंग से फ्री हुए ऑरा ब हम इंदूरे स्टेशन पर पहुचे है और यहा से ट्रेन 12 बजे है और वो भी पस्ससंगेर ट्रेन जो की हमे 8 बजे तक होमे स्टेशन पर उतारेगी, मैं सुबह 10 बजे तक घर आ जौगी,” उसके पापा ने कहा की “ओक बेटा, एक बार सिर से मेरी बात करऊ,” उसने फोन मेरी ओर किया तो मैने सिचुयेशन को संभालते हुए कहा की “अंकल सॉरी आज थोड़ा टाइम मीटिंग मे ज़्यादा हो गया, और अब ट्रेन भी 12 बजे है, एक फ्रेंड आपनी बाइक ऑफर कर रहा है, अगर आप कहे तो उससे ही आ जाते है? कोसिस करेगे तो तेज ड्राइव करके 5 या 6 बजे तक घर पहुच जाएगे?” अंकल ने रिप्लाइ किया “नही सिर, लदी साथ मे है, इतनी रात को त्वव्हीलर से आने ठीक नही होगा, आप लोग उसी ट्रेन से आ जाइए कोई दिक्कत नही,” मैने कहा “ओक अंकल, मैं माया को घर तक ड्रॉप करके ही आपने घर जौगा,” उन्होने ओक, टके केर कहते हुए लाइन डिसकनेक्ट कर दी, अब आयेज क्या हुआ? हम होटेल मे रुके या नही?